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जिजाबाई की जीवनी | Biography of Jijabai in Hindi

जिजाबाई की जीवनी | Account of Jijabai in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका महान् एवं प्रेरणास्पद चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

भारत भूमि वीर प्रसविनी माताओं की भूमि है । ऐसी वीर प्रसविनी राष्ट्रमाता थीं-जीजाबाई । एक माता ही नहीं, राष्ट्रमाता के रूप में उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी को जो संस्कार दिये, वही संस्कार शिवाजी के व्यक्तित्व को अदभुत एवं महान् बनाने में सार्थक एवं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे ।

राष्ट्रभक्ति एवं नैतिक चरित्र का जो बीजारोपण जीजाबाई ने शिवाजी में किया था, उसकी जड़ें शिवाजी को महान् व सदृढ़ बनाने में कारगर रहीं ।

2. उनका महान् एवं प्रेरणास्पद चरित्र:

शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म 1599 में अहमदनगर में हुआ था । वह अहमदनगर के सुलतान के सामंत सिंधखेड के जाधवराज की पुत्री थीं । उनका विवाह शाहंजी के साथ मात्र 8 वर्ष की अवस्था में हुआ था, जिसमें उन्हें 6 पुत्र हुए ।

उनमें से 4 अल्पायु में ही चल बसे । एक युद्ध में मारा गया, बच गये शिवाजी । विवाह के कुछ वर्षों बाद ही शाहजी ने जीजाबाई का त्याग कर दिया था और दूसरी सुन्दर स्त्री तुकाबाई मोहिते से विवाह कर लिया था ।

जीजाबाई और उनके परिवारजनों से शाहजी के परिवारवालों की बनती नहीं थी, अत: उन्होंने शिवाजी तथा जीजाबाई को शिवनेर के किले में अकेला छोड़ दिया था और वे अपने दूसरे पुत्र के साथ रहने लगे । दादा कोंणदेव को शाहजी ने शिवाजी तथा जीजाबाई को अपने संरक्षण में रखने का आदेश दिया । उनके संरक्षण में वे 1637 के अन्त में पूना में जाकर रहने लगे ।

दादा कोंणदेव ने जीजाबाई के रहने के लिए बड़ा भवन बनवाया और वहां पर शिवाजी की शिक्षा का प्रबन्ध भी करवाया । जीजाबाई अपने पुत्र शिवा को महाभारत, रामायण तथा अन्य धार्मिक हिन्दू ग्रन्थों की कहानियां तथा भारतीय वीरों की कहानियां बाल्यकाल से ही सुनाया करती थीं, वही शिवा में नैतिक संस्कार बनने में सहायक रहे । उन्होंने शिवा से मातृभूमि, गौ, मानव जाति की रक्षा का संकल्प लिया ।

जीजाबाई ने शिवा को तलवारबाजी, भाला चलाने की कला, घुड़सवारी, आत्मरक्षा, युद्ध-कौशल की शिक्षा में निपुण बनाया । परित्यक्ता होने के बाद भी उन्होंने आपने नैतिक चरित्र का त्याग नहीं किया । उन्होंने मुगलों की बर्बर धार्मिक नीति के विरुद्ध शिवा को तैयार किया था । उन्होंने दादा कोंणदेव की सहायता से शिवा को डर के सामने झुकने की बजाय उसका साहसपूर्वक सामना करने की शिक्षा दी थी ।

अच्छा प्रजाप्रिय, वीर व साहसी शासक बनाने के साथ-साथ उसमें उच्चतम चारित्रिक आदर्शों को समाहित किया । एक स्त्री होने के नाते उन्होंने शिवाजी को स्त्रियों के सम्मान तथा स्वाभिमान की रक्षा करने का दायित्व सौंपा था, जिसके कारण शिवाजी में एक आदर्श व्यक्ति, महान् सेनापति, महान् साम्राज्य निर्माता, सफल प्रशासक, धार्मिक सहिष्णुता एवं उदारता के साथ-साथ कठिनाइयों का साहसपूर्ण सामना बहादुरी से करने के गुण विकसित हुए ।

3. उपसंहार:

जीजाबाई सच्चे अर्थों में राष्ट्रमाता कहलाने के गौरव की अधिकारिणी हैं । एक भारतीय नारी किस तरह अपने पुत्र को पति की सहायता के बिना भी शिवाजी के रूप में राष्ट्रभक्त पुत्र बना सकती हैं, वह इसका उदाहरण हैं । शिवाजी के राज्याभिषेक के 11 दिनों बाद 17 जून, 1674 को उनकी मृत्यु हो गयी । धन्य हैं जीजाबाई!

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